झारखंड में फिर टल सकते हैं नगर निकाय चुनाव, तीन जिलों में ट्रिपल टेस्ट नहीं होने से अनिश्चितता

झारखंड में नगर निकाय चुनाव एक बार फिर टलने की आशंका जताई जा रही है। विधानसभा में सरकार की ओर से यह जानकारी दी गई कि राज्य के तीन जिलों में निर्धारित समय में ट्रिपल टेस्ट पूरा नहीं हो पाया है। इस घोषणा के बाद जनप्रतिनिधियों और आम जनता में चिंता बढ़ गई है।

चुनाव में देरी से विकास कार्य प्रभावित

चास नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर अविनाश कुमार ने इस स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि निकाय चुनाव न होने से शहरी क्षेत्रों का विकास पूरी तरह से ठप हो गया है। उन्होंने बताया कि आम नागरिकों को नगर निगम से जुड़े कार्यों के लिए लगातार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, लेकिन समाधान नहीं मिल पा रहा है।

पूर्व पार्षदों ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई और आरोप लगाया कि शहरी क्षेत्रों में चुनाव टाले जाने से बुनियादी सुविधाओं पर बुरा असर पड़ा है। उनका कहना है कि सफाई व्यवस्था से लेकर पेयजल आपूर्ति, स्ट्रीट लाइट और सड़कों की मरम्मत तक, कई ज़रूरी कार्य रुके हुए हैं।

क्या सरकार चुनाव में देरी कर रही है?

विधानसभा में हुई चर्चा के दौरान कई जनप्रतिनिधियों ने यह सवाल उठाया कि अगर सरकार की मंशा साफ होती, तो जिन जिलों में ट्रिपल टेस्ट पूरा हो चुका है, वहां चुनाव कराए जा सकते थे। 2008 में भी पहली बार नगर निकाय चुनाव के दौरान नौ जिलों को छोड़कर बाकी में चुनाव कराया गया था।

पूर्व विधायक सरयू राय ने भी इस मुद्दे को उठाया और कहा कि चुनाव की प्रक्रिया में देरी जनता के हितों के खिलाफ जा रही है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जब 21 जिलों में ट्रिपल टेस्ट पूरा हो चुका है, तो सिर्फ तीन जिलों की वजह से पूरे राज्य में चुनाव क्यों रोका जा रहा है?

चुनाव अधिकारी की सेवानिवृत्ति से बढ़ी दिक्कतें

जानकारी के मुताबिक, राज्य निर्वाचन अधिकारी डी.के. तिवारी 22 मार्च को सेवानिवृत्त हो चुके हैं। नए अधिकारी की नियुक्ति न होने से भी चुनावी प्रक्रिया में देरी हो सकती है। चूंकि नए अधिकारी के आने के बाद ही आरक्षण रोस्टर को अंतिम रूप दिया जाएगा और मतदाता सूची अपडेट होगी, इसलिए चुनाव प्रक्रिया अनिश्चितता में घिर गई है।

जनता पर असर: रुकी हुई योजनाएँ और परेशान नागरिक

चास नगर निगम से जुड़े स्थानीय नेताओं का कहना है कि चुनाव नहीं होने से केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई शहरी विकास योजनाओं के लिए फंड का उपयोग भी नहीं हो पा रहा है। पूर्व पार्षदों का दावा है कि केंद्र सरकार हर साल शहरी विकास के लिए झारखंड को 15 से 20 हजार करोड़ रुपये का फंड देती है, लेकिन चुनाव न होने से इस फंड का उपयोग संभव नहीं हो पा रहा है।

स्थानीय नागरिकों का भी कहना है कि जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनने में अब महीनों लग रहे हैं, जबकि पहले यह 20 दिनों में बन जाता था। प्रधानमंत्री आवास योजना और अन्य योजनाओं का भी कार्यान्वयन प्रभावित हो रहा है।

क्या चुनाव जल्द होंगे?

विधानसभा में हुई चर्चा के अनुसार, सरकार चुनाव कराने के पक्ष में है, लेकिन कानूनी अड़चनों की वजह से प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। सरकार का कहना है कि 21 जिलों में ट्रिपल टेस्ट पूरा हो चुका है, और शेष तीन जिलों में भी जल्द ही प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2025 के शुरुआती महीनों में चुनाव संपन्न हो सकते हैं।

हालांकि, विपक्ष और स्थानीय जनप्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार चुनाव में देरी कर रही है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में झारखंड मुक्ति मोर्चा को विधानसभा चुनावों में कम समर्थन मिलता है। ऐसे में वे निकाय चुनाव टालकर राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं।

निष्कर्ष

झारखंड में निकाय चुनावों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। जहां सरकार का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही चुनाव कराए जाएंगे, वहीं विपक्ष और स्थानीय नेता इसे जानबूझकर टालने की रणनीति बता रहे हैं। इस बीच आम जनता मूलभूत सुविधाओं की कमी और रुके हुए विकास कार्यों से जूझ रही है।

अब देखना यह होगा कि क्या सरकार जल्द कोई ठोस कदम उठाती है, या फिर चुनावी प्रक्रिया एक बार फिर अनिश्चितता के भंवर में फंस जाती है।

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