
✍️ एक सवाल जो झारखंड की आत्मा को झकझोर रहा है!
🌾 “शहीदों की पूजा करना अपराध कब से हो गया?”

29 जून 1855…
एक तारीख, जो झारखंड के हर आदिवासी के दिल में सिद्धू-कान्हू की वीरता की गूंज की तरह बसी है।
हर साल इसी दिन को हूल दिवस के रूप में मनाया जाता है – अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासी संघर्ष का प्रतीक।
लेकिन इस वर्ष…
2025 में…
हूल दिवस की पवित्रता लहूलुहान हो गई।
🔥 भोगनाडीह में घटी शर्मनाक घटना – शहीदों के वंशजों को ही रोक दिया गया!

साहिबगंज के भोगनाडीह में जब शहीद सिद्धू-कान्हू, फूलो-झानो और चांद-भैरव के वंशज पूजा में भाग लेने पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया।
जब उन्होंने आवाज़ उठाई तो…
लाठियां चलीं! आंसू गैस के गोले छोड़े गए!
ये कैसा सम्मान है शहीदों का?
क्या यही है आदिवासी हितों की रक्षा का वादा?
क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार अब अपनी ही जड़ों से कट चुकी है?
🧨 भाजपा का पलटवार – बोकारो में फूटा गुस्सा, CM का पुतला दहन

साहिबगंज की इस घटना के बाद पूरे राज्य में उबाल आ गया।
बोकारो में भाजपा कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पुतला दहन किया, नारेबाजी की और सरकार को आदिवासी विरोधी बताया।
भाजपा जिला अध्यक्ष जयदेव राय ने कहा –
“हेमंत सरकार आदिवासियों की नहीं, उनकी भावना कुचलने वालों की सरकार है। यह केवल विरोध नहीं, चेतावनी है।”
पूर्व विधायक बिरंची नारायण का बयान और भी तीखा था –

“अगर आदिवासी समाज ने डुगडुगी बजा दी, तो हेमंत सोरेन तीन कौड़ी के भी नहीं रह जाएंगे।”
📜 राजनीति की असली तस्वीर – झारखंड की आत्मा घायल है!

- क्या झारखंड की असली सरकार अब सत्ता में है?
- आदिवासी वंशजों पर लाठीचार्ज कर किसे फायदा पहुंचाया जा रहा है?
- क्या प्रशासन अब संवेदनहीन हो चुका है या यह सब योजनाबद्ध था?
हूल दिवस जैसे महापर्व पर हिंसा की छाया, झारखंड की आत्मा पर धब्बा है।
📌 शर्मनाक सवाल, जिनके जवाब हेमंत सरकार को देने होंगे:
- सिद्धू-कान्हू के वंशज पूजा में शामिल क्यों नहीं हो सके?
- किसके आदेश पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया?
- क्या आदिवासी मुख्यमंत्री के शासन में आदिवासियों की यह हालत होनी चाहिए?
- क्या यह लोकतंत्र में “राज्य आतंक” का नया उदाहरण नहीं है?
⚖️ सत्ता बनाम समाज – कौन किसके साथ खड़ा है?
झारखंड की राजनीति में यह घटना एक टर्निंग पॉइंट बन सकती है।
भाजपा के तेवर तीखे हैं, जनता आक्रोशित है और आदिवासी समाज अपने अपमान पर चुप नहीं रहेगा।
अब सवाल ये है कि क्या हेमंत सोरेन इस संकट का सामना कर पाएंगे या
सिद्धू-कान्हू की धरती से उन्हें विदाई की डुगडुगी बज चुकी है?
🔊 जनता का न्याय अभी बाकी है!
यह सिर्फ एक घटना नहीं, यह आदिवासी आत्मसम्मान की चोट है।
अब जनता जवाब चाहती है।
अब वोट नहीं, जवाबदेही चाहिए।
📢 आपका क्या कहना है?
👇 कमेंट करें –
क्या हेमंत सोरेन को इस्तीफा देना चाहिए?
क्या यह सरकार आदिवासी हितों की रक्षा में फेल हो चुकी है?