

जब पूरी दुनिया अपने-अपने धर्मों के त्योहारों को खुशी और उल्लास से मनाती है, वहीं इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम, ग़म, सब्र और बलिदान का प्रतीक है। यह वो महीना है, जब इंसानियत, ईमानदारी और सच्चाई के लिए एक महान बलिदान दिया गया था — हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों का बलिदान।
आज जब देशभर में मुहर्रम की याद में ताज़िया जुलूस निकाले जा रहे हैं, बोकारो स्टील सिटी भी इस आयोजन में पीछे नहीं रहा। 2025 के इस मुहर्रम में शहर में भव्य ताज़िया जुलूस का आयोजन हुआ, जिसमें लोगों की भारी भागीदारी देखी गई।
🕋 मुहर्रम क्या है?

मुहर्रम, इस्लामिक नववर्ष का पहला महीना है। यह चार पवित्र महीनों में से एक है जिसे कुरान में भी आदर के साथ वर्णित किया गया है। लेकिन इसका महत्व केवल नए साल के आगमन के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि यह एक गहरी और दर्दनाक ऐतिहासिक घटना की याद के रूप में मनाया जाता है।
⚔ करबला की त्रासदी: इमाम हुसैन की शहादत
सन 680 ईस्वी में इराक के कर्बला नामक स्थान पर इस्लाम के दो मार्गों के बीच टकराव हुआ। एक तरफ था यज़ीद, जो सत्ता के लिए धर्म और न्याय को कुचलने पर आमादा था। दूसरी ओर थे हज़रत इमाम हुसैन, जो इस्लाम की असल पहचान — सच्चाई, इंसाफ़ और मानवता — को बचाने के लिए खड़े थे।
10 मुहर्रम, जिसे ‘आशूरा’ कहा जाता है, उसी दिन हज़रत हुसैन और उनके 72 साथियों को भूखा-प्यासा रखकर, निर्दयता से शहीद कर दिया गया। इमाम हुसैन का बलिदान आज भी दुनिया भर में अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की प्रेरणा देता है।
🖤 मुहर्रम क्यों मनाया जाता है?
मुहर्रम का उद्देश्य कोई जश्न नहीं, बल्कि:
- बलिदान की याद
- सच्चाई की जीत का संदेश
- जुल्म के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक
- धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश
इस महीने में शिया मुसलमान 10 दिनों तक मातम करते हैं, ताज़िया निकालते हैं, और कर्बला की घटना को याद करते हैं। वहीं सुन्नी समुदाय के लोग रोज़ा रखते हैं और दुआ करते हैं।
📍 बोकारो में निकला भव्य ताज़िया जुलूस | 2025 का मुहर्रम विशेष
6 जुलाई 2025, बोकारो स्टील सिटी में आज का दिन बेहद खास रहा। मुहर्रम के मौके पर शहर के विभिन्न इलाकों से ताज़िया जुलूस निकाले गए। मुख्य आयोजन सेक्टर 4, सेक्टर 9, कुरमी टोला, चास और सेक्टर 12 क्षेत्रों में देखा गया।
🚩 जुलूस की प्रमुख बातें:

- ताज़िया, जिसे लकड़ी, कागज और रंग-बिरंगे वस्त्रों से सजाया गया था, शहर की गलियों से होते हुए मुख्य चौक तक पहुंचा।
- “या हुसैन! या हुसैन!” के नारों से शहर गूंज उठा।
- युवाओं की टोली ने मातम और सीनाजनी कर इमाम हुसैन को श्रद्धांजलि दी।
- ढोल-नगाड़ों की आवाज़ और शांति के साथ लोग मार्च करते रहे।
- स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए।
🕊️ सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की मिसाल
इस मुहर्रम ने एक बार फिर दिखा दिया कि बोकारो में केवल धर्म नहीं, इंसानियत की पूजा होती है। हिन्दू-मुस्लिम समुदायों ने मिलकर इस आयोजन को सफल बनाया। कई गैर-मुस्लिमों ने भी ताज़िया जुलूस में भाग लिया, पानी पिलाया और सेवा कार्य किए।
यह आयोजन न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक था, बल्कि एक सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का प्रमाण भी।
📸 सोशल मीडिया पर मुहर्रम का बोलबाला
बोकारो के मुहर्रम जुलूस की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं।
लोगों ने लिखा:
“हुसैन सिर्फ मुसलमानों के नहीं, पूरी इंसानियत के पैग़म्बर हैं।”
“मुहर्रम शहादत की वो मशाल है जो अंधेरे को चीरकर सच्चाई का रास्ता दिखाती है।”
🔍 निष्कर्ष: हुसैनियत का संदेश आज भी ज़िंदा है
मुहर्रम हमें केवल बीते कल की एक दर्दनाक कहानी नहीं सुनाता, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि ज़िंदगी में उसूलों के लिए जीना और मरना कितना जरूरी है।
इमाम हुसैन का बलिदान इस बात का प्रमाण है कि सच्चाई चाहे कितनी भी मुश्किल हो, वह अमर होती है।
बोकारो के इस वर्ष के मुहर्रम आयोजन ने एक बार फिर दिखा दिया कि ये शहर केवल स्टील से नहीं, संस्कृति और संस्कारों से भी बना है।