

❗ एक और भरोसे की दीवार गिरी…
“न्याय की रक्षा की शपथ लेने वाला अगर खुद अपराध में शामिल हो जाए तो फिर न्याय की उम्मीद किससे करें?” — यह सवाल आज बोकारो की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक गूंज रहा है।
बोकारो से सामने आई एक दहलाने वाली घटना ने पूरे सिस्टम की नींव हिला दी है। जहां एक साधारण ज़मीन विवाद ने हत्या का रूप ले लिया और अंत में एक पुलिसकर्मी समेत सात लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
📍 घटना का विवरण – 24 मई 2023

पिंड्राजोरा थाना क्षेत्र के नारायणपुर गांव में सुरेश मुर्मू अपने परिवार के साथ ज़मीन पर चारदीवारी करवा रहे थे। लेकिन तभी सात लोगों का एक समूह वहां पहुंचा — लाठी-डंडों से लैस। एकतरफा हमला हुआ। सुरेश मुर्मू को इतनी बुरी तरह पीटा गया कि इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। कई अन्य परिजन भी गंभीर रूप से घायल हुए।
⚖️ अदालत का फैसला – सजा और सवाल

बोकारो के अपर सत्र न्यायाधीश एवं विशेष न्यायाधीश दीपक बरनवाल ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 7 अभियुक्तों को षड्यंत्र के तहत हत्या का दोषी पाया। सभी को आजीवन कारावास और ₹25,000 का जुर्माना भी लगाया गया।
👉 दोषियों के नाम:

- सुखवंत सिंह (पुलिसकर्मी)
- राहुल कुमार
- चरण दास महतो
- मंतोष रंजन
- रितेश कुमार
- अभय कुमार
- लालू महतो
😡 जब वर्दी पर लगा खून का छींटा
इस घटना में सबसे बड़ा झटका तब लगा जब पता चला कि सुखवंत सिंह, जो इस हत्या में शामिल था, बोकारो पुलिस विभाग में कार्यरत है।
अब सवाल उठता है –
🔴 जब कानून की रक्षा करने वाला ही कानून तोड़ दे तो जनता कहां जाए?
🔴 क्या पूरे पुलिस विभाग की छवि इस एक घटना से धूमिल नहीं होती?
🔴 क्या अब न्याय व्यवस्था भी रक्षक और भक्षक में फर्क नहीं कर पा रही?
📢 जनता का आक्रोश और सवाल
बोकारो की जनता में गुस्सा है। सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं –
- “क्या पुलिस विभाग में गुनहगारों की भर्ती हो रही है?”
- “क्या जांच एजेंसियों ने पहले ही इसे रोका नहीं जा सकता था?”
- “क्या ऐसे मामलों में विभागीय कार्रवाई भी होगी या फिर यह पुलिसिया ‘भाईचारा’ सब पर भारी पड़ेगा?”
🧠 विश्लेषण:
यह घटना एक अकेला मामला नहीं हो सकता। यह पूरे सिस्टम में गहराई तक फैले भ्रष्टाचार और मिलीभगत की एक परत भर है। जब सरकारी पदों पर बैठे लोग गैंगस्टर सोच से काम करने लगें तो यह लोकतंत्र और कानून के लिए खतरे की घंटी है।
📌 निष्कर्ष:
यह सिर्फ हत्या नहीं, यह कानून पर हमला है।
यह सिर्फ एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि न्याय की गरिमा की चीरहरण है।
अब वक्त है कि ऐसे पुलिसकर्मियों की नकेल कसने का।
ऐसे फैसले ही जनता में विश्वास लौटाते हैं, लेकिन सवाल यह है –
क्या अगली बार फिर कोई सुरेश मुर्मू मारा जाएगा, या व्यवस्था जागेगी?
👉 अगर आप चाहते हैं कि कानून के रक्षक अपराधियों से अलग हों, तो इस ब्लॉग को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
आपकी आवाज़ ही बदलाव की सबसे बड़ी ताकत है।
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