
झारखंड के बोकारो जिले में स्थित भेंडरा गांव केवल एक नाम नहीं, बल्कि 15वीं सदी के इतिहास से जुड़ा एक ऐतिहासिक प्रमाण है। यह गांव लोहे के औजारों के निर्माण में अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें मुगल काल से जुड़ी हुई हैं, जब शेरशाह सूरी ने इस क्षेत्र में विशेष कारीगरों को बसाया था।
इतिहास की झलक
शेरशाह सूरी, जो 1540 में हुमायूं को हराकर भारत के उत्तरी भाग में सूरी साम्राज्य की स्थापना करने वाला पठान शासक था, ने युद्ध सामग्री निर्माण के लिए भेंडरा गांव को एक प्रमुख केंद्र बनाया। यहां तलवार, तीर-कमान, भाला और फरसा जैसे युद्धक हथियारों का निर्माण होता था। अंग्रेजी शासन के आगमन के बाद, यहां के कारीगरों ने रेलवे के लिए इंजीनियरिंग टूल्स बनाना शुरू कर दिया। भारत में बॉल पेन हैमर का हैंड फोर्जिंग सबसे पहले भेंडरा में ही हुआ था, इससे पहले यह इंग्लैंड से आयात किया जाता था।
भेंडरा का औद्योगिक योगदान
आज भी इस गांव में लगभग 150 यूनिट्स हैं, जहां 500 से अधिक परिवार लोहा कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं। ये कारीगर अपने हाथों से लोहे के औजार बनाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- तलवार और वसूला
- हथौड़ा और कटार
- कारपेंट्री टूल्स
- एग्रीकल्चरल टूल्स
- माइनिंग टूल्स
तकनीकी चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं
हालांकि, आधुनिक मशीनों की अनुपलब्धता के कारण यह परंपरागत कला धीरे-धीरे दम तोड़ती नजर आ रही है। भेंडरा के कारीगर आज भी 15वीं सदी की तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। यहां की ग्राइंडिंग तकनीक भारत में दुर्लभ है और इसे केवल झारखंड के झालदा क्षेत्र में ही देखा जा सकता है।
सामाजिक और आर्थिक महत्व
भेंडरा गांव में विश्वकर्मा लोहार परिवार प्रमुख रूप से कारीगरी में संलग्न हैं, लेकिन यहां 171 जातियों के लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। लगभग 5000 लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं, जिससे यह गांव रोजगार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।
निष्कर्ष
भेंडरा गांव न केवल झारखंड बल्कि पूरे भारत के लिए एक सांस्कृतिक और औद्योगिक धरोहर है। यहां के कारीगरों की मेहनत और कला को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़कर यदि उचित समर्थन दिया जाए, तो यह उद्योग नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है।