
बोकारो, झारखंड: बोकारो जिले के चास क्षेत्र में जमीन विवाद का एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां एक ओर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमीन पर कब्जे का आरोप लगाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विरोधी पक्ष इसे झूठा दावा बता रहा है। इस मामले में दोनों पक्ष एक-दूसरे पर भू-माफिया होने और रंगदारी मांगने जैसे आरोप लगा रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?

यह विवाद चिरचास थाना अंतर्गत जमा गोरिया मौजा में स्थित 57 खाता नंबर की 40 डिसमिल जमीन को लेकर है। अनिल पांडे नामक व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि उमेश ठाकुर ने फर्जी दस्तावेज बनवाकर इस जमीन की खरीद-बिक्री की है। अनिल पांडे का दावा है कि यह जमीन 27 फरवरी 1941 को ज़मींदार जादू ओझा ने हुमा रजवार को दी थी, लेकिन बाद में हुमा रजवार से इसे वापस ले लिया गया। बावजूद इसके, बादल मोदक और उमेश रजवार द्वारा जाली दस्तावेज तैयार कर इसे 1385 डीड पर पुनः दलील बनाया गया और पावर ऑफ अटॉर्नी लेकर इसे बेचा जा रहा है। इस मामले में उपायुक्त और रजिस्ट्रार को शिकायत देकर जांच की मांग की गई है।
पहला पक्ष:

अनिल पांडे, जो इस जमीन को अपनी बताते हैं, उन्होंने उमेश ठाकुर पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर अवैध रूप से जमीन बेचने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि 1941 में हुमा रजवार को दी गई जमीन कानूनी रूप से उनके अधिकार में नहीं थी, फिर भी बादल मोदक और उमेश रजवार ने इसे अपने नाम जोड़कर फर्जी डीड तैयार किया।
विरोधी पक्ष का बयान

उमेश ठाकुर ने इन आरोपों को खारिज करते हुए अपने कागजातों को वैध बताया है। उन्होंने कहा कि यदि यह जमीन वास्तव में अनिल पांडे की है, तो वह उसे कब्जे में लेकर दिखाएं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जमीन रजवार समुदाय की है, जिससे उन्होंने इसे खरीदा है। यदि कोई साबित कर दे कि यह जमीन रजवार समुदाय की नहीं है, तो वह इसे छोड़ने के लिए तैयार हैं।
गंभीर आरोप और विभागीय चूक

दीपक कुमार, जो अनिल पांडे के सहयोगी हैं, ने भी उमेश ठाकुर पर फर्जी कागजात बनवाने और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से जमीन बेचने का आरोप लगाया है। उन्होंने सवाल उठाया कि 27 फरवरी 1941 को जादू ओझा द्वारा हुमा रजवार को दी गई जमीन का डीड नंबर 1385 था, जिसे उसी दिन वापस ले लिया गया था। ऐसे में तीन महीने बाद 15 मई 1941 को उसी नंबर पर नया डीड कैसे जारी हो गया? उन्होंने इसे सरकारी विभाग की बड़ी लापरवाही बताया।
हुमा रजवार परिवार का पक्ष

मथुरा रजवार, जो खुद को हुमा रजवार का परिवार का सदस्य बताते हैं, ने कहा कि उनका परिवार 1941 से इस जमीन पर खेती करता आ रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि यह जमीन किसी और की थी, तो इतने वर्षों तक वे इसे दावा करने क्यों नहीं आए? उनके अनुसार, यह विवाद हाल ही में उभरा है, जब कुछ लोग इस जमीन को हड़पने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया

इस विवाद पर जब रजिस्ट्रार से बात की गई, तो उन्होंने कैमरे पर कोई बयान देने से इनकार कर दिया, लेकिन विभागीय स्तर पर गलती होने की बात मानी। उन्होंने कहा कि मामले की जांच की जाएगी और यदि कोई फर्जी दस्तावेज बनाए गए हैं, तो संबंधित अधिकारियों और दस्तावेज बनाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अब आगे क्या?
यह विवाद दिन-ब-दिन पेचीदा होता जा रहा है। दोनों पक्ष अपने-अपने कागजातों को सही साबित करने में लगे हैं। अब देखना यह होगा कि प्रशासन किस पक्ष को सही मानता है और क्या फर्जी कागजात तैयार करने वालों पर कोई कानूनी कार्रवाई होती है या नहीं।