

“जब जनता डूब रही थी, तब कुछ लोग चुप थे… और कुछ लोग अपने जूते गीले करने से नहीं डरे!”
बोकारो के सेक्टर वन में स्थित तिरंगा पार्क के पास झोपड़ी में रहने वाले करीब 50 परिवारों की ज़िंदगी एक भयंकर त्रासदी में फंस गई। बीते कई दिनों से लगातार हो रही बारिश ने उनकी उम्मीदों, घरों और सपनों को बहा दिया।

तालाब का जलस्तर बढ़ा, पानी झोपड़ियों में घुस गया। छोटे बच्चों की किताबें भीग गईं, वृद्धों का बिस्तर तक पानी में डूब गया। हर तरफ सिर्फ चीखें थीं, बेबसी थी… और था इंतज़ार — कि कोई आए और हाथ थाम ले।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि…
👉 जहां ये दर्दनाक मंजर सामने था, वहां से महज़ 1000 मीटर की दूरी पर पूर्व विधायक बिरांची नारायण का आवास स्थित है।

📍 वही बिरांची नारायण, जो कभी जनता के “विकास पुरुष” कहलाए।
📍 वही इलाका, जिसे उन्होंने अपने कार्यकाल में “मॉडल सेक्टर” कहकर प्रचारित किया।
❓ तो सवाल यह है…
- क्या उन्हें इन 50 परिवारों की चीखें सुनाई नहीं दीं?
- क्या वो सिर्फ़ चुनावी मौसम में जनता की चिंता करते हैं?
- अगर 1000 मीटर की दूरी पर भी आपको जनता का दर्द महसूस नहीं होता… तो आप कौन-से जनप्रतिनिधि थे?
🙌 दूसरी ओर एक नया चेहरा उभरा – वर्तमान विधायक श्वेता सिंह।

वो न सस्ती राजनीति करती हैं, न फोटो खिंचवाने जाती हैं — बल्कि मौके पर पहुंचती हैं, फैसला लेती हैं और राहत पहुंचाती हैं।
जैसे ही उन्हें खबर मिली कि तिरंगा पार्क तालाब के पानी से इलाके में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं, उन्होंने तुरंत तालाब का वाल्व खुलवाया और 50 परिवारों को सुरक्षित एचएससीएल क्लब में पहुंचाया।
🆘 इस पूरे घटनाक्रम ने दो नेताओं की सोच और संवेदना का फर्क दिखा दिया:

- एक वो जो सिर्फ दिखते हैं।
- एक वो जो वाकई जनता के बीच रहते हैं।
💥 यह सिर्फ एक जलजमाव की कहानी नहीं है… यह संवेदनशीलता बनाम संवेदनहीनता की टक्कर है।
📌 और जब अगली बार नेता वोट मांगने आएं…
तो ज़रूर पूछिए — “जब मेरा घर डूब रहा था, तब आप कहां थे?”
🔗 Share कीजिए इस खबर को, ताकि सच्चाई सिर्फ पानी में न बहे… बल्कि लोगों के दिलों तक पहुंचे।
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