श्यामलता पुल: रोमांच नहीं, मौत का रास्ता! | प्रशासन बेपरवाह, जनता मजबूर

“अगर रास्ता ही मौत का हो, तो मंज़िल का क्या मतलब?”
यह पंक्ति सुनने में भले ही साहित्यिक लगे, लेकिन बोकारो जिले के पेटरवार के श्यामलता पुल पर रोज़ाना हज़ारों लोग इसी डर के साए में सफ़र करते हैं। यह पुल अब पुल नहीं रहा, बल्कि एक चलती-फिरती कब्रगाह में तब्दील हो चुका है — जहां मौत हर कोने में छुपी बैठी है, और प्रशासन… आंख मूंदे।

🛑 एक पुल नहीं, जानलेवा ट्रैक

इस पुल को देखकर कोई भी समझ जाएगा कि ये जगह रोमांच की नहीं, खौफ की है।

  • एक तरफ ऊंची खाई,
  • दूसरी तरफ टूटी रेलिंग,
  • बीच में बरसाती पानी से भरा फिसलन भरा रास्ता,
  • और उस पर से टूटी-फूटी सड़कें

यह रास्ता बाइक सवारों के लिए मौत का फिसलन है, पैदल चलने वालों के लिए फंदा, और स्कूली बच्चों के लिए हर रोज़ का डर।

🧓 50 साल पुरानी लापरवाही

करीब 1974-75 में बना यह पुल, अब अपनी उम्र पूरी कर चुका है। पर अफ़सोस की बात ये है कि इस पुल की उम्र तो पूरी हो गई, लेकिन इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं मिला।
तेनू घाट कैनाल के ऊपर बना यह पुल, अब इतनी बुरी हालत में है कि कभी भी ढह सकता है। पुल की सतह पर दरारें हैं, रेलिंग गायब है, और जगह-जगह से यह ढांचा कमजोर हो चुका है।

🔊 स्थानीय लोगों की आवाज़ – लेकिन सुना किसने?

पेटरवार के ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों ने बार-बार प्रशासन को पत्र लिखा, शिकायतें कीं, सोशल मीडिया पर आवाज़ उठाई – लेकिन हुआ क्या?

कुछ नहीं।

खेनीराम सोरेन, क्षेत्रीय वार्ड सदस्य बताते हैं –
“यह पुल कई गांवों को कोर्ट, अस्पताल और जिला मुख्यालय से जोड़ता है। इसकी मरम्मत न होने की वजह से हज़ारों लोग हर दिन जान हथेली पर लेकर सफर करते हैं। अगर यह पुल ढह गया, तो सड़क ही नहीं, पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।”

आनंद प्रजापति, जिला परिषद प्रतिनिधि कहते हैं –
“हमने कई बार विभाग को लिखित और मौखिक शिकायत की, लेकिन जवाब सुनने को नहीं मिला। यह पुल अब राजनीति का मोहरा बन चुका है, जहां जनता की जान की कोई कीमत नहीं।”

📉 प्रशासन की चुप्पी = हत्या की मंज़ूरी?

अब सवाल यह है कि आखिर क्यों नहीं हो रही मरम्मत?
क्या प्रशासन किसी बड़ी जनहानि का इंतजार कर रहा है?
क्या इस रास्ते से किसी VIP के गुजरने तक हमें इंतजार करना होगा?
क्या बोकारो की जनता की जान अब वोट बैंक से भी सस्ती हो चुकी है?

जवाब किसी के पास नहीं है।
सब चुप हैं। सब अंधे हैं। और जनता मजबूर है।


🚨 जब मौत का रास्ता सिस्टम की नींद तोड़ेगा

इस पुल पर अब तक कई गाय-बैल गिर चुके हैं, कुछ बच्चे और नशे की हालत में मजदूर भी जान गंवा चुके हैं।
हर दिन कोई न कोई हादसा टलता है, लेकिन एक दिन… वह हादसा टलने वाला नहीं होगा। उस दिन पूरे सिस्टम की नींद खुलेगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

🗣️ यह पुल नहीं, लापरवाही की कब्र है

हर बार हादसे के बाद सरकारें “मुआवज़ा” देती हैं, नेता “शोक व्यक्त” करते हैं, अधिकारी “जांच” के आदेश देते हैं। लेकिन क्यों न इस बार हादसा होने से पहले ही कार्रवाई की जाए?


🔥 अब वक्त है – सवाल करने का

  • क्यों जनता की ज़िंदगी इतनी सस्ती है?
  • किसकी जिम्मेदारी है यह पुल?
  • क्या सिर्फ चुनावी मंच से समस्या हल होती है?
  • कब होगा इस पुल की मरम्मत?

📣 क्या करें आप? जनता की शक्ति सबसे बड़ी होती है

आप इस सिस्टम का हिस्सा हैं, आवाज़ उठाइए:

✅ इस ब्लॉग को शेयर करें
✅ इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर बोलें
✅ स्थानीय विधायकों, सांसदों, अधिकारियों को टैग करें
✅ अपने गांव-शहर की सुरक्षा के लिए मांग उठाइए
✅ #SaveShyamlataBridge ट्रेंड करें


📌 निष्कर्ष:

श्यामलता पुल इन्फ्रास्ट्रक्चर की नहीं, संवेदनहीनता की हार है।
यह पुल बताता है कि सरकारें सड़कें बनाना जानती हैं, लेकिन उन्हें संभालना नहीं।
यह पुल बताता है कि जब तक कोई मर न जाए, तब तक सिस्टम जिंदा नहीं होता।
अब फैसला आपको करना है –
आप चुप रहेंगे या सवाल पूछेंगे?

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