बोकारो में मां मथुरासिनी देवी की भव्य पूजा – आस्था, परंपरा और उल्लास का संगम!

🚩 बोकारो में 43 वर्षों से हो रही भव्य मां मथुरासिनी पूजा | माहुरी समाज का गौरवशाली उत्सव | नगर भ्रमण व 56 भोग

📌 प्रस्तावना:
बोकारो की पावन धरती एक बार फिर भक्तिमय हो उठी, जब माहुरी वैश्य समाज ने पूरे श्रद्धा और भक्ति के साथ मां मथुरासिनी देवी की पूजा अर्चना संपन्न की। इस धार्मिक आयोजन में सैकड़ों श्रद्धालु अपने परिवारों सहित उपस्थित हुए और पूरे विधि-विधान के साथ मां की आराधना की। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि समाज की एकता, संस्कृति और परंपरा का भी एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।

माहुरी समाज द्वारा आयोजित यह भव्य उत्सव बीते 43 वर्षों से लगातार मनाया जा रहा है और हर वर्ष इसकी भव्यता में वृद्धि हो रही है। इस वर्ष भी समाज के लोगों ने एकत्रित होकर पूरे श्रद्धा भाव से इस धार्मिक अनुष्ठान में भाग लिया और इसे ऐतिहासिक बना दिया।


📌 धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत – नगर भ्रमण और भक्ति यात्रा

परंपरा के अनुसार, मां मथुरासिनी देवी की पूजा से एक दिन पहले नगर भ्रमण (शोभायात्रा) निकाली जाती है। इस नगर भ्रमण में समाज के पुरुष, महिलाएं और बच्चे श्रद्धा भाव से शामिल होते हैं।

👉 शोभायात्रा की विशेषताएँ:
🔹 इस दौरान श्रद्धालु ढोल-नगाड़ों की गूंज के साथ नाचते-गाते हुए नगर भ्रमण करते हैं।
🔹 भव्य शोभायात्रा में धार्मिक झांकियां, फूलों की सजावट और पारंपरिक परिधान में सजे श्रद्धालु इस आयोजन की भव्यता को और बढ़ा देते हैं।
🔹 पूरे नगर में भक्तिमय वातावरण देखने को मिलता है, जहां लोग मां की भक्ति में मग्न होकर मंत्रोच्चारण और कीर्तन करते हैं।
🔹 नगर भ्रमण के बाद श्रद्धालु मां मथुरासिनी देवी के मंदिर में एकत्र होते हैं, जहां विशेष आरती और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है।


📌 भव्य पूजन और 56 भोग का आयोजन

नगर भ्रमण के अगले दिन मुख्य पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस दौरान समाज के सभी लोग एकत्र होकर मां मथुरासिनी देवी की मूर्ति का अभिषेक, पुष्प अर्पण, हवन और विशेष आरती करते हैं।

🔹 मंदिर परिसर को विशेष रूप से सजाया जाता है और वहां भक्तों का तांता लगा रहता है।
🔹 विशेष पूजा विधि के तहत मां को 56 प्रकार के भोग का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
🔹 यह भोग पारंपरिक रूप से तैयार किया जाता है, जिसमें मिठाइयाँ, फल, दूध से बने व्यंजन, दाल-भात, खिचड़ी और पकवान शामिल होते हैं।
🔹 मां के चरणों में अर्पित यह प्रसाद भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।

इस मौके पर माहुरी वैश्य समाज के प्रमुख सदस्य कविता कुमारी कड़वे ने जानकारी दी कि भारत में सबसे पहले मां मथुरासिनी देवी की पूजा बोकारो की इस पावन भूमि पर ही प्रारंभ की गई थी और इस वर्ष पूरे 43 वर्षों का भव्य महोत्सव मनाया गया।


📌 सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्तिमय संध्या

पूजा के दिन शाम को एक विशेष सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया जाता है, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग भाग लेते हैं।

🔹 समाज की महिलाओं द्वारा सांस्कृतिक नृत्य और भजन-कीर्तन प्रस्तुत किए जाते हैं।
🔹 युवा वर्ग भी धार्मिक गीतों और भक्ति संध्या के माध्यम से मां की भक्ति में लीन हो जाता है।
🔹 बच्चों द्वारा रामायण, महाभारत और अन्य धार्मिक कथाओं पर आधारित नाट्य प्रस्तुति भी की जाती है।

इस अवसर पर माहुरी समाज के समाजसेवी, विद्वान और वरिष्ठ सदस्य भी मंच पर अपने विचार रखते हैं और समाज को संगठित और सशक्त बनाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं।


📌 मां मथुरासिनी देवी और माहुरी समाज का ऐतिहासिक संबंध

मां मथुरासिनी देवी को माहुरी समाज की कुलदेवी माना जाता है। माना जाता है कि माहुरी समाज के पूर्वज मूल रूप से मथुरा से थे और मुगल आक्रमणों के समय वे मगध और अन्य क्षेत्रों में प्रवास कर गए।

🔹 माहुरी समाज के वरिष्ठ सदस्य बताते हैं कि जब मुगल शासकों के अत्याचारों के कारण माहुरी समाज के लोग मथुरा से अन्य राज्यों में प्रवास कर रहे थे, तब मां मथुरासिनी देवी उनकी रक्षा कर रही थीं।
🔹 इस मान्यता के कारण माहुरी समाज के लोग आज भी मां मथुरासिनी देवी की पूजा बड़े श्रद्धा और भक्ति भाव से करते हैं।


📌 धार्मिक आयोजन का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व

इस आयोजन का उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के सभी लोगों को एकजुट करने का भी कार्य करता है।

👉 इस आयोजन से प्राप्त लाभ:
✅ समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार होता है।
✅ सभी वर्गों के लोग एक साथ आकर सामूहिक पूजा और उत्सव मनाते हैं, जिससे समाज में एकता और सहयोग की भावना बढ़ती है।
युवाओं को भारतीय संस्कृति और धर्म की महत्ता से अवगत कराने का यह एक उत्तम अवसर होता है।
✅ यह आयोजन समाज के उत्थान, परिवारों की समृद्धि और सभी के कल्याण के लिए एक प्रार्थना का माध्यम भी बनता है।


📌 कार्यक्रम का समापन और भविष्य की योजनाएँ

पूजा महोत्सव के समापन पर रात्रि भंडारे और महाप्रसाद का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया।

आयोजन समिति के सदस्यों ने बताया कि भविष्य में इस आयोजन को अधिक भव्य और विस्तृत रूप देने की योजना बनाई जा रही है। साथ ही, माहुरी समाज द्वारा विभिन्न सामाजिक सेवा गतिविधियों जैसे – गरीबों के लिए भोजन वितरण, शिक्षा सहायता और चिकित्सा सेवा – को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है।


📌 निष्कर्ष – आस्था और परंपरा की अमिट छाप

मां मथुरासिनी देवी की यह भव्य पूजा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह सदियों पुरानी परंपरा, समाज की एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।

🚩 क्या आप इस भव्य आयोजन का हिस्सा बने हैं? अपने विचार कमेंट में साझा करें और इस धार्मिक उत्सव को और अधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए इसे शेयर करें! 🚩



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